यमराज की दिशा- चंद्रकांत देवताले (Yamraj Ki Disha- Chandrakant Devtale): 2022

कक्षा – 9 ‘अ’ क्षितिज भाग 1 पाठ 16

      यमराज की दिशा- चंद्रकांत देवताले

यमराज की दिशा का सारांश : 

संकलित कविता में कवि सभ्यता के विकाश की खतरनाक दिशा की और इशारा करते हुए कहना चाहता है की आज के समाज में चारो और भ्रस्टाचार फैला हुआ है। समाज में हर जगह बुराई फ़ैल चुकी है। कवि को लगता है की अब चारो तरफ यमराज का ही वाश है। सहरो में चारो और बनी ऊँची ऊँची इमारते उन्हें यमराज की याद दिलाती है। हर जगह मनुष्य में यमराज के रूप में लोगो में भ्रस्टाचार, हिंसा, लालच घुस चुकी और इसी कारण वश वे सभी एक दूसरे को मौत की नींद सुलाने वाले हैं। कवि अपनी माता को याद करता है जिन्होंने उन्हें बताया था की दक्षिण दिशा में यमराज का वाश है। लेकिन अब कवि को लगता है की यमराज सर्वयापी है और इसी वजह से वो चैन की नींद नहीं सो पा रहा है।

Yamraj Ki Disha Kavita Ka Bhavarth – Yamraj Ki Disha Poem Summary :

 

माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं

कहना मुश्किल है

पर वह जताती थी जैसे

ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है

और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार

जिंदगी जीने और दुख बर्दाश्त करने

के रास्ते खोज लेती है

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने माँ के ऊपर उनका विश्वाश और उनका माँ का ईश्वर के ऊपर विश्वाश को बड़ी ही सरलता से प्रकट किया है। उनके अनुसार उन्हें यह नहीं पता ही उनकी माँ ने ईश्वर को देखा है की नहीं और यह अनुमान लगाना भी लेखक के लिए बहुत कठिन है लेकिन उनकी माँ ईश्वर को यह विश्वाश दिला चुकी है की उनके और ईश्वर के बिच बात चित होती रहती है और ईश्वर उन्हें जिंदगी जीने की सलहा देते रहते हैं। और ईश्वर से प्राप्त सलहा के अनुसार उनकी माँ जिंदगी जीने और दुःख बर्दाश्त करने के रास्ते खोज लेती है और उन्हें भी जिंदगी जीने के रास्ते बताती है और समस्याओं का सामना करने की प्रेरणा देती है।

 

माँ ने एक बार मुझसे कहा था-

दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना

वह मृत्यु की दिशा है

और यमराज को क्रुद्ध करना

बुद्धिमानी की बात नहीं

भावार्थ :- जब कवि बच्चे थे तब कवि के माँ ने उन्हें बहुत सारी सिक्षाएँ दी थी जिनमे से एक यह थी की उनकी माँ ने उन्हें बताया था की दक्षिण दिशा की ओर पैर करके कभी भी नहीं सोना चाहिए। क्यूंकि दक्षिण दिशा में यमराज (मृत्यु के देवता) का निवेश होता है। अगर हम दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोयेंगे तो यमराज को गुस्सा आ जायेगा। इसलिए हमें इस दिशा में पैर करके ना सोना ही चतुराई है। क्यूनि मृत्यु के देवता, यमराज को गुस्सा दिलाना कोई बुद्धिमानी की बात तो नहीं है।

 

तब मैं छोटा था

और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था

उसने बताया था-

तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बच्चों के मन में उठे सवाल को बड़े ही सरलता से दिखाया है की किस प्रकार एक बच्चा अपने माँ के समझाने के बाद उससे यमराज के घर का पता पूछने लगता है और फिर माँ की कुशलता का तो कोई जवाब ही नहीं है उसे पता है की बच्चे को किस तरह समझाना है और वह अपने बच्चे को बोल देती है की तुम जहाँ पर भी रहो उस जगह से दक्षिण की और हमेशा यमराज का वाश होगा।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने दक्षिण दिशा के द्वारा दक्षिणपंती विचारधारा को यमराज बताया है क्यूंकि जो भी इसके चंगुल में आता है वह अपनी सभ्यता संस्कृति का नाश कर बैठता है और इस प्रकार उसका सर्वनाश हो जाता है।

 

माँ की समझाइश के बाद

दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया

और इससे इतना फायदा जरूर हुआ

दक्षिण दिशा पहचानने में

मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा

भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कहा है की माँ के बार-बार समझाने से लेखक कभी भी दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोया और इस चीज का एक अच्छा प्रभाव यह पड़ा की लेखक को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी भी परेशानी नहीं हुई।

इसका अर्थ यह है की बड़े होने के बाद जब लेखक को अपनी माँ की दी हुई सिख समझ आयी तो उन्हें दक्षिण दिशा का तात्पर्य समझ आया और अपनी माँ की दी हुई सिख पर अमल करते हुए उन्होंने कभी भी दक्षिणपंति विचारधारा को नहीं अपनाया जिनसे उन्हें यह फायदा हुआ की दूर रहकर उन्हें उनकी त्रुटियों का आभास हो गया।

 

मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया

और मुझे हमेशा माँ याद आई

दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था

होता छोर तक पहुँच पाना

तो यमराज का घर देख लेता

भावार्थ :- यमराज का घर देखने के लिए कवि दक्षिण दिशा में दूर दूर तक गया और जब भी वह दक्षिण दिशा में यात्रा करता हर समय उसे अपने माँ की दी हुई सिख याद आती की दक्षिण दिशा यमराज का घर होता है। और इसी कारण वश वह यमराज का घर खोजने में लग जाता लेकिन कवि को कभी यमराज का घर नहीं मिला क्यूंकि उनके अनुसार दक्षिण दिशा का छोर क्षितिज बहुत ही दूर था जिस तक कवि कभी पहुँच नहीं पाया और इसी वजह से उसे यमराज का घर भी नहीं मिला।

इसका अर्थ यह यह है की जब भी वह दक्षिणपंथी विचारधारा की बड़ा हर बार उसे अपने माँ के द्वारा दी हुई सिख याद आई और इसी वजह से वह कभी भी उसके चंगुल में नहीं पड़ा।  और यही कारण है की वह कभी भी दक्षिण विचारधार को नहीं अपना पाया।

 

पर आज जिधर भी पैर करके सोओ

वही दक्षिण दिशा हो जाती है

सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं

और वे सभी में एक साथ

अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं

भावार्थ :- कवि के अनुसार उनकी माँ ने जब उन्हें यह सिख दी थी तब यमराज का वाश केवल दक्षिण दिशा में था लेकिन अब ऐसा नहीं है क्यूंकि चारो दिशाओं में यमराज का वाश हो गया है इसीलिए जिधर भी पैर करके सोओ कवि को वही दक्षिण दिशा लगती है। इस तरह पहले की और आज की स्थिती में काफी अंतर आ चूका है। आज यमराज का विस्तार हर दिशा में हो चूका है। कवि जिस दिशा में पैर करके सोता है उस दिशा में उसे बड़े बड़े आलीशान महल के रूप में यमराज नजर आता है और उन इमारतों में यमराज की दहकती हुई लाल आँखे कवि को सोने नहीं देती है।

इसका अर्थ यह है की पहले दक्षिणपंती विचारधारा का खतरा केवल कुछ गिने चुने लोगो से ही थे लेकिन आज ऐसा नहीं है क्युकी अधिकांश लोग इस विचारधार से ग्रस्त हो चुके हैं इसलिए अब हम कोई भी दिशा में सुरक्षित नहीं। और इस विचारधारा के लोग एक दूसरे का शोषण करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं।

 

माँ अब नहीं हैं

और यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रही

जो माँ जानती थी

भावार्थ :- लेखक के अनुसार माँ के चले जाने के उपरांत अब यमराज की दिशा भी बदल चुकी है उसका विस्तार हर दिशा में हो चूका है इसलिए माँ के द्वारा बतया गया नुस्खा की दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोना है अब कोई काम का नहीं रहा क्यूंकि लेख जिस दिशा में भी पैर करके सोने की कोशिश करता है हर तरफ लम्बी लम्बी इमारतों में उसे यमराज की दहकती हुई आँखे नजर आती है।

इसका अर्थ यह है की अब चारो और पूंजीपतियों का वाश है जो साधारण जन मानष का शोषण करने में लगे हुए हैं।

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