कक्षा – 9 ‘अ’ क्षितिज भाग 1 पाठ 1
सवैये – रसखान
सवैये कविता का सारांश :
यहाँ दिए गए प्रथम सवैये में कवि कृष्ण के प्रति अपने भक्ति का उदहारण पेश करता है। उनका कहना है की ईश्वर उन्हें चाहे मनुष्य बनाये या पशु, पक्षी या फिर पत्थर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता वो सिर्फ कृष्ण का साथ चाहते हैं। इस तरह हम रसखान के काव्यों में कृष्ण के प्रति अपार प्रेम तथा भक्ति भाव को देख सकते हैं। अपने दूसरे सवैये में रसखान ने कृष्ण के ब्रज प्रेम का वर्णन किया है की वे ब्रज के खातिर संसार के हर सुखो का त्याग कर सकते हैं। गोपियों के कृष्ण के प्रति अतुलनीय प्रेम को तीसरे सवैये में दर्शाया गया है, उन्हें कृष्ण के हर वस्तु से प्रेम है। वे सव्यं कृष्ण का रूप धारण कर लेना चाहती हैं। अपने अंतिम सवैये में रसखान कृष्ण के मुरली की मधुर ध्वनि तथा गोपियों की विवस्ता का वर्णन किया है की किस प्रकार गोपिया चाहकर भी कृष्ण को प्रेम किये बिना नहीं रह सकती।
रसखान के सवैये अर्थ सहित – Raskhan Ke Savaiye in Hindi with Meaning :-
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।
भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रसखान का श्री कृष्ण एवं उनके गांव गोकुल ब्रज के प्रति अपार प्रेम का वर्णन हुआ है। कवि के अनुसार ब्रज के कण कण में श्री कृष्ण बसे हुए हैं। इसीलिए वो चाहे जो भी जन्म में धरती पर आये उनकी बस एक ही शर्त है की वो ब्रज में जन्म लें। अगर वो मनुष्य के रूप में जन्म लें तो वो गोकुल के ग्वालों के बीच में जन्म लेना चाहते हैं। अगर वो पशु के रूप में जन्म लें तो वो गोकुल के गायो के संघ विचरणा चाहते हैं। अगर वो पत्थर भी बने तो उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं जिस गोवर्धन पर्वत को श्री कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए अपने उँगलियों में उठाया था। और अगर वो पक्षी भी बने तो वो यमुना के तट पर कदम्ब के पेड़ो में रहने वाले पक्षियों के साथ रहना चाहते हैं। इस प्रकार कवि चाहे कोई भी रूप में जन्म ले वो रहना ब्रज की भूमि में ही चाहते हैं।
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रसखान का भगवन श्री कृष्ण एवं उनके वस्तुओं के प्रति बड़ा गहरा लगाव प्रेम देखने को मिलता है। वे कृष्ण के लाठी और कंबल के लिए तीनो लोकों के राज पाठ तक छोड़ने के लिए तैयार है। अगर उन्हें नन्द की गायो को चराने का मौका मिले तो इसके लिए वो आठो सिद्धियों एवं नौ निधियों के सुख को भी त्याग सकते हैं। जब से कवि ने ब्रज के वनों, बगीचों, तालाबों इत्यादि को देखा है वे इनसे दूर नहीं रह पा रहे हैं। जब से कवि ने करील पेड़ की लताओं के घर को देखा है वो इनके ऊपर करोड़ो सोने के महलें भी न्योछावर करने के लिए तैयार है।
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥
भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में रसखान ने कृष्ण से प्रेम करने वाले गोपियों के बारे में बताया है जो एक दूसरे से बात करते हुए कह रही है की वो कन्हया के द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं को उपयोग कर कन्हया का रूप धारण कर सकती है सिवाए एक चीज के की वे कन्हया की मुरली को नहीं धरेंगी। यहाँ गोपियाँ कह रही हैं की अपने सर पर श्री कृष्ण की भाति मोरपखा से बना हुआ मुकुट धारण कर लेगी। अपने गले में कुंज की माला भी पहन लेंगीं। और उनके सामान पिले वस्त्र भी पहन लेंगीं और अपने हाथो में लाठी लेकर वो वन में ग्वालों के संग गायो को भी चारा देंगी। वह कृष्ण हमारे मन को बहुत मोहक लगता है इसलिए मैं तुम्हारे कहने पर ये सब कर लुंगी लेकिन मुझे कृष्ण के होटो पर रखी मुरली को अपने मुख पर रखने मत बोलना क्युकी इसी मुरली की वजह से कृष्ण हमसे दूर हुए हैं।
काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
भावार्थ :- कवि रसखान ने अपने इन पंक्तियों में गोपियों के मन में कृष्ण के प्रति आपार प्रेम को दर्शया है। वो चाहकर भी कृष्ण को अपने दिलो दिमाग से निकल नहीं सकती। इसीलिए वे कह रही है की जब कृष्ण अपनी मुरली बजाएंगे तो वो उनसे निकलने वाली मधुर ध्वनि को नहीं सुनेंगी। वे अपने कानो में हाथ रख लेंगी। फिर चाहे कृष्ण किसी महल के ऊपर चढ़ कर अपनी मुरली से मधुर ध्वनि क्यों न बजाये और गीत ही क्यों न गाये मैं जब तक उन्हें नहीं सुनुँगी तब तक मुझ पर उनका कोई असर नहीं होने वाला। लेकिन अगर गलती से भी उसकी मधुर ध्वनि मेरे कानो में चली गई तो फिर गांव वालो मैं अपने बस में नहीं रह सकती। मुझसे फिर चाहे कोई कितना भी समझाए मैं समझने वाली नहीं हूँ। गोपियों के अनुसार कृष्ण के मुख में मुस्कान इतनी ही प्यारी लगती है की उससे देख कर कोई भी उसके बस में आये बिना नही रह सकता। और इसी कारन वश गोपियाँ कह रही हैं की उनसे श्री कृष्ण का मोहक मुख देख कर संभाला नहीं जायेगा।
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