कक्षा – 9 ‘अ’ क्षितिज भाग 1 पाठ 1
कैदी और कोकिला – माखनलाल चतुर्वेदी
कैदी और कोकिला कविता का सारांश :-
कवि ने यह कविता “कैदी और कोकिला” उस समय लिखी है जब जब देस ब्रिटिश साशन के आधीन गुलामी के जंजीरो में जकड़ा हुआ था। और वे खुद भी एक सवतंत्रा सेनानी थे जिसके लिए स्वयं उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। और तभी वे इस बात से अवगत हुए की जितने भी सवतंत्रा सेनानी, जिन्हे जेल भेजा जाता है उनके साथ कितना दूर वयवहार होता है। और इसी सोच को उन्होंने उस समय समस्त जनता के सामने लाने के लिए इस कविता की रचना की।
अपने इस कविता में कवि ने जेल में बंद एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ एक कोयल का वर्णन भी किया है। जहाँ एक ओर सैनिक हमें जेल में हो रहे उस समय के यातनाओं के बारे में बताया है वहीं दूसरी और कोयल को एक माध्यम के रूप में बताया है जिससे एक कैदी अपना दुःख वयक्त करता है। कैदी के अनुसार जहाँ पर चोर डाकुओं का रखा जाता हैं वहां उन्हें(सवतंत्रता सेनानियों) को रखा गया है। उन्हें भर पेट भोजन भी नसीब नहीं होता। ना वो रो सकते हैं और न ही चैन की नींद सो सकते हैं। जहाँ पर उन्हें बेड़ियां और हथकड़ियाँ पहन कर रहना पड़ता है। जहाँ उन्हें ना तो चैन से जीने दिया जाता है और ना ही चैन से मरने दिया जाता है। और वह चाहता है की यह कोयल समस्त देशवासियों को मुक्ति का गीत सुनाये।
कैदी और कोकिला का भावार्थ – Kaidi Aur Kokila Vyakhya :-
क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
सन्देश किसका है?
कोकिल बोलो तो!
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि सुमित्रानंदन पंत ने कारागार में बंद एक स्वतंत्रता सेनानी के मनोदशा को दर्शाया है की रात के घोर अन्धकार में अपने कारागृह के ऊपर जब वह सेनानी एक कोयल को गाते हुए सुनता है तो उसके मन में कई तरह के भाव एवं प्रसन्न जन्म लेने लगते हैं । उसे ऐसा लगता है की कोयल उसके लिए कोई संदेश लेकर आयी है कोई प्रेरणा का स्रोत लेकर आयी है। और उससे इन प्रसन्नो का बोझ सहा नहीं जाता और एक-एक कर के कोयल से सारे प्रसन्न पूछने लगता है। वह सर्वप्रथमं कोयल से पूछता है की तुम क्या गा रही हो ? फिर गाते-गाते तुम बिच-बिच में चुप क्यों हो जा रही हो। कोयल बोलो तो क्या तुम मेरे लिए कोई संदेश लेकर आयी हो। अगर कोई संदेश लेकर आयी हो तो उसे कहते कहते चुप क्यों हो जा रही हो। और यह संदेश तम्हे किस स्रोत से मिला है कोयल बोलो तो।
ऊँबी ची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली?
भावार्थ:- आगे कारागृह में बंद स्वतंत्रता सेनानी अपनी जेल के अंदर होने वाले अत्याचार एवं अपनी दयनीय स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है की उन्हें जेल के अंदर अन्धकार में काली और ऊँची दीवारों के बिच डाकू, चोरों-उचक्कों के मध्य रहना पड़ रहा है जहाँ उनका कोई मान सम्मान नहीं है। जबकि स्वतंर्ता सेनानियों के साथ इस तरह का बर्ताव नहीं किया जाना चाहिए। आगे उनकी दयनीय स्थिती का पता चलता है जब वो बताते हैं की उन्हें जीने के लिए पेट भर खाना भी नहीं दिया जाता और उन्हें मरने भी नहीं दिया जाता है तात्पर्य यह है की उन्हें तड़पा तड़पा का जीवित रखना ही प्रशासन का उद्देश्य है। इस प्रकार उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई है और उनके ऊपर रात दिन कड़ा पहरा लगा होता है। इस प्रकार शाशन उनके साथ घोर अन्नाय कर रहा है और इसी कारन चारो ओर सिर्फ निराशा ही निराशा है। और अब तो उन्हें आकाश में भी घोर अंधकार रूपी निराशा दिख रही जहाँ चन्द्रमा का थोड़ा सा भी प्रकाश नहीं है। इसलिए सवतंत्रा सेनानी की माध्यम से कवि कोयल से पूछता है। हे कोयल इतनी रात को तू क्यों जाग रही है और दूसरों को क्यों जगा रही है।
क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लुटा?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवि जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी कोयल के आवाज में दर्द का अनुभव करता है। और उसे ऐसा लगता है की कोयल ने अंग्रेज सरकार द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देख लिया है इसीलिए उसके कंठ मीठी एवं मधुर ध्वनि के बजाय वेदना का स्वर सुनाई पड़ रहा है जिसमे कोयल की हुक है। कवि के अनुसार कोयल अपनी वेदना सुनाना चाहती है। इसीलिए कवि कोयल से पूछ रहा है की कोयल बोलो तो तुम्हारा क्या लूट गया है जो तुम्हारे कंठ से वेदना की ऐसी हुक सुनाई पड़ रही है। कवि के अनुसार कोयल तो सबसे मीठी एवं सुरीली आवाज के लिए विख्यात है जिससे गाते हुए सुनकर कोई भी मनुष्य प्रसन्न हो उठता है। लेकिन जेल में बंद उस स्वतंत्रता सेनानी को कोयल की आवाज न ही सुरीली लगी और न ही मीठी लगी बल्कि उसे कोयल के आवाज में दुःख और वेदना की अनुभूति हुई इसीलिए वह वयाकुल हो उठा और कोयल से बार पूछने लगा की बताओ कोयल तुम्हारे ऊपर क्या विपदा आई है।
क्या हुई बावली?
अर्ध रात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालायें हैं दीखी?
कोकिल बोलो तो!
भावार्थ:- स्वतंत्रता सेनानी को कोयल का इस तरह अन्धकार से भरे अर्ध रात्रि में गाना (चीखना) बड़ा ही अस्वाभाविक लगा और इसी वजह से उसने कोयल को बावली कहते हुए उससे पूछा है की तुम्हे क्या हुआ है तम इस तरह आधी रात में क्यों चीख रही हो। यहाँ पर कवि ने जंगल की भयावह आग से अंग्रेजी सरकार द्वारा की जाने वाली यातनाओं को सम्बोधित किया है। और उन्हें ऐसा लग रहा है की कोयल ने अंग्रेजी सरकार की करामात देख ली है इसलिए वह चीख चीख कर सबको बता रही है।
क्या? -देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? ये ब्रिटिश-राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ?- जीवन की तान,
गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली?
भावार्थ:- कैदी को यह लगता है की कोयल उसकी इस दशा एवं उसे जंजीरों में बंधा देखकर यूँ चीख पड़ी है और इसलिए कैदी कोयल से कहता है की क्या तम हमें इस तरह जंजीरो में लिपटे हुए नहीं देख सकती हो जो इस तरह चीख पड़ी हो। अरे ये तो अंग्रेजी सरकार द्वारा हमें दिया गया गहना है। अब तो कोल्हू चलने की आवाज हमारे लिए जीवन का प्रेरणा गीत बन गया है। और दिन भर पत्थर तोड़ते तोड़ते हम उन पत्थरों में अपने उंगलियों से भारत की स्वतंत्रता के गान लिख रहे हैं। और हम अपने पेट में रस्सी बांधकर कोल्हू का चरसा चला-चला कर ब्रिटिश सरकार की अकड़ का कुआँ खाली कर रहे हैं। अर्थात हम इतनी यातनाओं के सहने और भूके रहने के बाद भी अंग्रेजी शासन के सामने नहीं झुक रहे हैं जिससे उनकी अकड़ जरूर कम हो जाएगी। और इसी वजह से हमारे अंदर दिन में यातनाओं को सहने के लिए गजब का आत्म बल होता है जिससे हमारे अंदर कोई करुणा उत्पन्न नहीं होती और न ही हम रोते हैं। और यह बात तुम्हे पता चल गया है इसीलिए सैयद तुम हमें रात में सांत्वना देने आयी हो। परन्तु तुम्हारे इस वेदना भरे स्वर ने हमारे ऊपर गजब ढा दिया है और हमारे मन को व्याकुल कर दिया है।
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
भावार्थ:- कैदी कोयल से आगे कहता है की इस अर्ध रात्रि में तुम अन्धकार को चीरते हुए क्यों इस तरह रो रही हो। कोयल बोलो तो क्या तम हमारे अंदर अंग्रेजी सरकार के खिलाप विद्रोह के बीज बोना चाहती हो। इस तरह कवि ने एक स्वतंत्रता सेनानी जिसे कैदी बनाकर रखा गया है उसके मनो स्थिती का वर्णन किया है की किस प्रकार कोयल के मधुर संगीत में भी उसे विद्रोह के बीज की अनुभूति हो रही है।
काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, एे आली!
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अंग्रेजी शासन काल के दौरान जेलों में सवतंत्रता संग्रामियों के साथ घोर अन्याय का चित्रण किया है और काले रंग को हमारे समाज में दुःख और अशांति का प्रतिक होता है। इसीलिए कवि ने यहाँ हर चीज को काला बताया है। और इसीलिए कवि कैदी के माध्यम से कह रहा है की कोयल तू खुद काली है और ये रात भी घोर काली है। और ठीक इसी तरह अंग्रेजी सरकार द्वारा की जाने वाली करतुतें भी काली है। और जेल के अंदर काली चार दिवारी में चलने वाली हवा भी काली है । मैंने जो टोपी पहनी हुई वो भी काली है और जो कम्बल मैं ओढ़ता हूँ वो भी काली है। मैंने जो लोहे की जंजीरे पहन रखीं है वो भी काली है। और इसी वजह से हमारे अंदर आने वाली कल्पनाये भी काली हो गई हैं। इतनी यातनाओं को सहने के बाद हमारे ऊपर दिन भर नजर रखने वाले पहरे दार की हुंकार और गाली भी हमें सुन्नी पड़ती है।
इस काले संकट-सागर पर
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कैदी यह नहीं समझ पा रहा है की कोयल स्वतंत्र होने के बाद भी इस अर्ध रात्रि में कारागार के ऊपर मंडराकर क्यों गा रही है। या फिर इस संकट में खुद को इसलिए ले आयी है की उसने मरने की ठान ली है। इसीलिए कवि कोयल से पूछ रहा है कोयल बोलो तो। कवि यह नहीं समझ आ रहा है की कोयल अपनी मधुर एवं मीठी आवाज को इतनी रात में इस अन्धकार से भरी काल कोठरी के ऊपर मंडराकर क्यों वर्थ में क्यों गा रही है। इसका कोई लाभ होने वाला नहीं है। इसीलिए कैदी कोयल से पूछ रहा है। कोयल बोलो तो।
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे मिली कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने स्वतंत्र कोयल एवं बंदी कैदी की मनःस्थिति की तुलना बड़ी ही मार्मिक रूप से की है। जहाँ एक ओर कोयल पूरी तरह से स्वतंत्र अपनी मन के मुताबिक किसी भी पेड़ की डाली में जाकर बैठ सकती है कहीं पर भी विचरण कर सकती है। वहीँ दूसरी और कैदी के लिए अंधकार से भरी 10 फुट की जेल की चार दिवारी है। जिसमे उसे अपना जीवन बिताना है जहाँ पर वो अपनी इच्छानुसार कुछ भी नहीं कर सकता। जहाँ एक ओर कोयल के गान को सुनकर सब लोग वाह वाह करते हैं वहीँ दूसरी और किसी कैदी के रोने को कोई सुनता तक नहीं है। इस प्रकार कैदी और एक कोयल के परिस्थिति में जमीन आसमान का फर्क है। एक ओर जहाँ कोयल स्वतंत्र है वहीँ दूसरी और कैदी तो कहा ही इसलिए जा रहा है की वह बंदी है। पर फिर भी कोयल युद्ध का संगीत क्यों बजा रही है।
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कोयल और कैदी दोनों के अंदर स्वतंत्रता की भावना को दिखाया है जहाँ एक ओर कोयल अपनी ध्वनि से देशवासियों में विद्रोह को जागृत कर रही है वहीँ दूसरी ओर कैदी स्वंत्रता के लिए लगातार अंग्रेजी सरकार की यातनाये सहन कर रहा है। इसीलिए कवि ने यहाँ कैदी के लिए कोयल की आवाज को एक प्रेरणा का रूप दिया जिसे सुनकर कैदी कुछ भी करने के लिए तैयार हो सकते है। और इसलिए इन पंक्तियों में कैदी कोयल से पूछ रहा है की हे कोयल मुझे बता की गांधी जी द्वारा चलाये जा रहे इस स्वतंत्रता संग्राम में मैं किस तरह अपने प्राण झोंक दू। मैं तम्हारे संगीत को सुनकर अपनी रचनाओं के द्वारा क्रान्ति की ज्वाला भड़काने वाली अग्नि तो पैदा कर रहा हु लेकिन मई और क्या कर सकता हु, हे कोयल बोलो तो।
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